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03 दिसंबर 2010

वनवासी कल्याण को समर्पित

Vanvasi-देवब्रत वशिष्ठ

पिछले कुछ समय से आदिवासियों का धर्मांतरण जोरों पर है। इनकी गरीबी, अशिक्षा तथा भोलेपन का लाभ उठाकर यह कार्य किया जा रहा है। धर्मांतरण के लिए आर्थिक प्रलोभन का प्रयोग हथियार की तरह किया जा रहा है। नागालैण्ड के बहुसंख्यक आदिवासी स्वयं को धनुर्विद्या में पारंगत यशस्वी महाभारतकालीन महान योद्धा एकलव्य का वंशज और उन्हें अपना आदि पुरूष मानते हैं।

जैसा कि प्राय: बताया जाता है कि आज भी आखेट करने या अन्य किसी अवसर पर धनुष-बाण चलाते समय नागा बंधु अपने अंगूठे का प्रयोग नहीं करते। इसका कारण पूछने पर उनका उत्तर होता है कि हम एकलव्य के वंशज हैं जिन्होंने गुरुदक्षिणा स्वरूप अपना अंगूठा अपने गुरु को श्रद्धापूर्वक भेंट कर दिया था। अत: आदिवंश के उस महामना के यशस्वी कार्य की याद में हम भी अंगूठे का प्रयोग नहीं करते।

धर्मांन्तरण में धन की भूमिका का सदैव वर्चस्व रहा है। धन के इस प्रवाह के संबंध में गत शताब्दी के नब्बे के दशक में पूर्व उपप्रधानमंत्री तथा भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने संसद में प्रश्न उठाए थे। इस संबंध में पर्सनल पब्लिक ग्रीवेन्सीज एण्ड पेंशन मंत्रालय से सम्बन्धित तत्कालीन राज्य मंत्री ने आवश्यक सूचना उपलब्ध कराई थी, जिसके अनुसार सन् 1988 में इस मद में छह अरब 85 करोड़ 12 लाख रुपए की राशि विदेशों से प्राप्त हुई थी। भारत में वनवासी समाज की संख्या अनुमानत: आठ करोड़ है जो कुल जनसंख्या के सात प्रतिशत के आसपास है।

यहां चार सौ पचास जनजातियां हैं जिनकी लगभग उतनी ही बोलियां हैं। पचास जनजातियां सर्वाधिक पिछड़ी हुई हैं और उनका धंधा खेती-बाड़ी न होकर जंगल में शिकार करना, मछली पकड़ना और शहद एकत्रित करना है। जंगल से कंद मूल व फलादि एकत्रित करके वे भूख शांत करते हैं।

देश में निरन्तर हो रहे हिन्दू समाज के धर्मांतरण को देखने और अत्यन्त गम्भीरता से अनुभव करने वाले एक निष्ठावान समर्पित राष्ट्र प्रेमी दिवंगत बाला साहब देश पाण्डे ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 26 जनवरी 1913 को महाराष्ट्र के अमरावती नगर में जन्मे श्री पाण्डेय की प्राथमिक शिक्षा अमरावती में और माध्यमिक से स्नातकोत्तर तक की शिक्षा नागपुर में सम्पन्न हुई। सन् 1937-38 में उन्होंने रामटेक में वकालत प्रारम्भ की और 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में रामटेक की कचहरी पर तिरंगा फहराने निकले।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद पण्डित रविशंकर शुक्ल मध्य भारत (वर्तमान मध्य प्रदेश) के पहले मुख्य मंत्री बने। वे 1948 में वेशयगढ़ जिले के दौरे पर आए। यहां ईसाई मिशनरियों की प्रेरणा और सहयोग से धार्मान्तरित वनवासियों ने उनका स्वागत काले झण्डों तथा जय हिन्द के स्थान पर ‘जय यीशू’ और वापिस जाओ के उद्धोषों से किया। रायगढ़ वनांचल में देशद्रोह की लहलहाती फसल को देख कर उसका उपचार करने के लिए पण्डित रविशंकर शुक्ल ने ठक्कर बापा को आमंत्रित किया। उन्हीं की सलाह से उपचार की जिम्मेदारी पाकर एक युवक रमाकान्त को एरिया आर्गेनाइजर के पद के साथ 31 मई 1948 को जशपुर भेजा गया।

स्थिति का अधययन कर रमाकान्त ने ठक्कर बापा की अपेक्षा से अधिक विद्यालय जशपुर क्षेत्र में एक वर्ष में प्रारम्भ कर दिये जिससे इस क्षेत्र में मिशनरियों का एकछत्र राज और आतंक कम हुआ। वर्तमान में देश में 12500 से अधिक मिशनरी कार्यरत हैं जिनमें 6000 विदेशी पादरी हैं। 38000 संस्थाएं इनकी देखरेख में चलती हैं। प्रति वर्ष 600 करोड़ की विदेशी सहायता इनको प्राप्त होती है। प्रति वर्ष 175000 नये ईसाई बनते हैं। इसके अलावा 44 मुस्लिम देशों से एक हजार करोड़ रुपया धार्मान्तरण के लिये प्रतिवर्ष इस देश में आता है।

16 दिसम्बर, 1952 को बाला साहब देशपाण्डेय ने जशपुर में मात्र छह वनवासी बालकों को लेकर कल्याण आश्रम की स्थापना की। संघ के वरिष्ठ प्रचारक मोरेश्वर हरि उनके सहयोगी बने। प्रारम्भ में तीन चार वर्ष आश्रम का खर्च बाला साहब अपनी जेब से चलाते रहे। 1967 में मध्य भारत का प्रथम छात्रावास सेंधावा में प्रारम्भ हुआ। 1977 में कल्याण आश्रम की रजत जयंती के अवसर पर दिवंगत प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई जशपुर पधारे थे। कल्याण आश्रम की प्रणाली से प्रभावित होकर उन्होंने शासकीय सहायता का प्रस्ताव रखा जिसे बाला साहब ने विनम्रता पूर्वक अस्वीकार करते हुए कहा कि कल्याण आश्रम शासनाश्रित रहने की अपेक्षा सामाजाश्रित रहना चाहता है। 1978 से 1983 तक कठोर परिश्रम और देशव्यापी भ्रमण कर बाला साहब ने वनवासी कल्याण आश्रम को अखिल भारतीय रूप दिया। 21 दिसम्बर 1995 को श्री पाण्डेय का देहावसान हो गया।

हरियाणा प्रदेश में इस दिशा में प्रथम प्रयास 1984 में हिन्दू ऐज्यूकेशन सोसायटी के सहयोग से सोनीपत नगर में किया गया था, जहां हिन्दू हाई स्कूल में पढ़ने के लिये नागालैण्ड के ग्यारह बच्चे लाये गये। कई कठिनाइयों और असफलताओं के बाद जून 1986 में इसे भिवानी नगर में स्थानान्तरित कर दिया गया। प्रारम्भ में इसे कुछ मास सेठ गणपत राय लोहारीवाला की भव्य विशाल हवेली में रखा गया। दो वर्ष बाद इस हवेली के बिक जाने पर इसे नगर के पुराने बस अड्डे के साथ सुगला धर्मशाला में स्थापित कर दिया गया। इसी मध्य लगभग एक हजार वर्ग गज जमीन एक दान शील व्यक्ति ने बजरंग बली कालोनी में दान स्वरूप आश्रम भवन के निर्माणार्थ प्रदान की।

बाद में दो सौ पचास वर्ग जमीन और क्रय कर ली गयी। इस प्रकार प्लाट का आकार 1250 वर्ग गज हो गया। 29 अप्रैल 1989 को भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के हाथों वनवासी कल्याण आश्रम के छात्रावास भवन का शिलान्यास हुआ। 1993 में दो मंजिला एक भव्य छात्रावास भवन तैयार हो गया जिसमें दस कमरे तथा एक विशाल सभाकक्ष है। छात्रावास के सभी कमरों के निर्माणार्थ जनता ने उदारता पूर्वक स्वेच्छा से धनराशि तथा निर्माण व अन्य सामग्री प्रदान कर आश्रम के प्रति अपनी गहन रुचि दर्शायी। प्रारम्भ में छात्रावास में छात्रों की संख्या मात्रा तेरह थी जो वर्तमान में पचास से अधिक है।

इनमें अरुणाचल के दो, नगालैण्ड के आठ, मणिपुर के सात, मिजोरम के चौदह, मेघालय के नौ, सिक्किम के सात, उड़ीसा का एक व छह अन्य प्रदेशों के हैं। वनवासी कल्याण आश्रम के छात्रों को प्रति वर्ष विभिन्न स्थानों की यात्रा पर भी ले जाया जाता है। आश्रम की देखभाल करने वालों में मुख्य हैं आन्ध्र प्रदेश निवासी हनुमान नारायण तथा उनकी विदुषी पत्नी प्रभा देवी, सुधाकर पाण्डेय तथा मनीराम। ये दोनों उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। एकलव्य छात्रावास के इन आदिवासी छात्रों का हिन्दी तथा संस्कृत का उच्चारण इतना शुद्ध तथा सुस्पष्ट होता है कि उनका एकल या सामूहिक लयबद्ध सहगान सुन कर किसी को भी आभास तथा विश्वास नहीं होता कि यह स्वर आदिवासी बालकों के हैं।

29 अक्टूबर 1997 को वनवासी कल्याण आश्रम के वार्षिकोत्सव समारोह पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए हरियाणा के दिवंगत मुख्यमंत्री चौधारी बन्सीलाल ने आश्रम के क्रियाकलापों तथा गतिविधियों की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए कहा था कि मेरी इच्छा है कि हरियाणा में ऐसे और कई आश्रम स्थापित किए जाएं। भिवानी स्थित वनवासी कल्याण आश्रम के कुशल एवं सफल संचालन से प्रेरित होकर कैथल नगर में भी एक बालिका छात्रावास बनाने की योजना पर गम्भीरता पूर्वक विचार किया जा रहा है। वर्तमान में हरियाणा के मात्र छह जिलों में काम चल रहा है जबकि राज्य के शेष जिलों में ईकाईयां स्थापित करने की योजना है।

एकलव्य छात्रावास के छात्रों में से कुछ छात्रों से हुई बातचीत में जब उनसे यह पूछा गया कि यहां से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भविष्य में उनकी क्या करने की योजना है? उनमें से तीन-चार छात्रों ने स्पष्ट एवं दृढ़ शब्दों में कहा कि हम लोग इस कार्य के लिए स्वयं को इस क्षेत्र में पूर्ण निष्ठा से समर्पित कर देंगे यह हमारा निश्चयात्मक संकल्प है। कुछ अन्य ने कहा कि वे आजीवन समर्पित कार्यकर्ता अथवा प्रचारक के रूप में अपनी सेवाएं देकर अपना दायित्व निभायेंगे।

इसके अतिरिक्त इन पंक्तियों के लेखक को बातचीत के प्रसंग में यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आश्रम के चार-पांच छात्रों ने अपने परिवार में शराब तथा मांसाहार का पूरी तरह निषेध कर दिया है। छात्रावास के छात्र स्वयं को राष्ट्र की मुख्य धारा का एक अभिन्न अंग मानते हैं, जो एक उपलब्धि है।

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