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03 दिसंबर 2010

आर्य व द्रविड़ प्रजाति - यथार्थ या भ्रम-- हरि राम मीणा

आर्य व द्रविड़ प्रजाति - यथार्थ या भ्रम

हाल ही में सेंटर फार सेल्युलर एंड मोलेक्युलर बायोलोजी के पूर्व निदेशक लालजी सिंह एवं इसी संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक कुमारस्वामी थंगराजन ने आर्य व द्रविड़ प्रजातियों को लेकर शोध किया है जिसका आधार जीनस् के अध्ययन को बनाया । उनका निष्कर्ष है कि आर्यो एवं द्रविड़ों का भेद एक भ्रान्ति है और इन दोनों प्रजातियों के आधार पर उत्तर एवं दक्षिण भारत को अलग अलग देखने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, चूंकि आर्यजन के भारत में प्रवेश के हजारों वर्ष पहले उत्तर व दक्षिण भारत में पृथक मानव प्रजातियां निवास कर रही थी ।
दोनों वैज्ञानिकों ने उत्तर एवं दक्षिण के 13 प्रातों के 25 मानव समूहों के कुल 1300 व्यक्तियों को सेम्पल के रूप में अध्ययन में शामिल किया । इस शोध में 5 लाख जैनेटिक संकेतकों ;उंतामतेद्ध पर विश्‍लेषण किया गया । अध्ययन में शामिल सभी व्यक्ति भारत की प्रमुख 6 भाषा परिवारों से सम्बंध रखते हैं। साथ ही परम्परागत रूप से जिन्हें उच्च व निम्नवर्ग कहा जाता है उनका भी प्रतिनिधित्व रखा गया ।
यह अध्ययन हार्वर्ड मेडीकल स्कूल, हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और एम0आई0टी0 के सहयोग से किया गया । शोधार्थियों का मानना है कि वर्तमान भारत के लोग उनके उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय पूर्वजों के वंषज हैं । भारत में आदिकाल में 65 हजार वर्ष पहले अंडमान एवं दक्षिण भारत में मानव समूह अन्यत्र से आकर रहने लगे एवं 40 हजार वर्ष पहले उत्तर भारत में । कालान्तर में दोनों भू-भागों के वे आदिमानव आपस में घुले मिले और उनके मध्य पैदा हुए सम्बंधों से मिश्रित जनसंख्या सामने आई । यह जनसंख्या दोनों पूर्वजों से भिन्न पैदा हुई ।
यही जनसंख्या आज के भारत का प्रतिनिधित्व करती है। इस निष्कर्ष के बावजूद जैनेटिक रोगों की दृष्टि से आंचलिक विशेषताएँ सामने आई जो यह संकेत देती हैं कि भारत की जनसंख्या का करीब 70 प्रतिषत हिस्सा जैनेटिक असंतुलन ;कपेवतकमतद्ध से ग्रसित हैं और इसी वजह से आंचलिक एवं मानव समुदाय विशेष के स्तर पर जेनेटिक रोग पाये जाते हैं यथा पारसी महिलाओं में स्तन-कैंसर, चित्तूर व तिरूपति के निवासियों में मोटर न्यूरोन बीमारी और पूर्वोत्तर तथा मध्य भारत के आदिवासियों में ‘स्किल सैल एनीमिया’।
करीब 1,35,000 से 75,000 वर्ष पहले पूर्वी अफ्रीका भू-भाग में बाढ़ आने से वहां की करीब 95 प्रतिशत जनसंख्या विस्थापित हुई और उनमें से कुछ ने दक्षिण समुद्री तट होते हुए अंडमान तक का रास्ता लिया जो इस क्षेत्र के आदिपूर्वज पाये गये ।
शोधार्थियों के अनुसार इस मत में कोई दम नहीं है कि प्राचीन भारत में कोई मानव समूह मध्यपूर्व यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया अथवा आस्टेलिया से भारत आये। उल्लेखनीय है कि इस अध्ययन का आधार जेनेटिक्स है लेकिन इस सीमा के बावजूद इस विषय पर विमर्श की संभावनाएँ हैं जिनका स्वागत है।
प्रस्तुतकर्ता हरि राम मीणा

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